Wednesday, March 30, 2011

'जियो क्योंकि हमारा मालिक चाहता है कि अभी हम जियें.' How to stop suicidial tendency

@ पूजा जी ! आपकी टिप्पणी को मैं गागर में सागर की संज्ञा देता हूँ . आपकी यह टिप्पणी भी ऐसी ही है.
आपने सच कहा जो भी कहा है . ख़ुदकुशी करने वाला सोचता है कि मरकर दुःख से पीछा छूट जायेगा लेकिन उसे सोचना चाहिए कि पाप से तो दुःख बढ़ता है कम नहीं होता . आदमी का अंतिम कर्म तो प्रभु से क्षमा याचना का और पुण्य का कर्म होना चाहिए ताकि आदमी के कर्मों का खाता उसके अच्छे कर्म पर बंद हो . इसीलिए मरते समय कालिमा पढ़ा जाता या ऊपरवाले का नाम लिया जाता है. ख़ुदकुशी करने वाला इसके खिलाफ अंतिम कर्म पाप का करके मरता है और खुद को  परलोक  की यातना का पात्र बनाता है . दुनिया की तकलीफ से घबराया तो मर गया और मरकर जो तकलीफ वह पायेगा , उससे बचने के लिए वह कहाँ जायेगा ?
मुसलमान यही सोचता है और ख़ुदकुशी से रुक जाता है. हरेक की ज़िन्दगी में ऐसे अवसर ज़रूर आते हैं जब उसके सपने और अरमान टूटते हैं या हालात अपने काबू से बाहर जाते हुए लगते हैं . ऐसी बेबसी और गम के आलम में आदमी को लगता है कि अब उसकी ज़िन्दगी उसके लिए एक बोझ है, अब जीना बेकार है , क्या फायदा ऐसी अधूरी और अपमानजनक ज़िन्दगी जीने से और दुःख उठाने से ?
इस जीने से तो अच्छा है कि मर जाएँ .
ऐसे अवसर मेरी जिंदगी  में भी  बहुत बार आये और जब भी मरने का विचार आया तो परलोक की सज़ा के डर  ने हमेशा अपने जीवन को ख़तम करने मुझे रोक दिया .
पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब स. ने मालिक के फज्लो करम से  हमेशा मुझे सही रास्ता दिखाकर पाप करके मरने से बचा लिया . ऐसे अवसर पर दीन की समझ रखने वाले एक मुसलमान  को उनकी वे हदीसें  याद आती हैं जिनमें बताया गया है कि
जो कोई ख़ुदकुशी करके मरता है . मरने के बाद वह क़ियामत के रोज़ तक बार बार उसी तरीके से खुदकुशी करके मरता रहेगा. उसके पाप का यह दंड उसे मिलेगा.
हमने सोचा कि इतने बड़े दुःख को कैसे उठाएंगे ?
लिहाजा दुनिया का हरेक दुःख परलोक की उस यातना के सामने छोटा लगने लगा और जीना आसन हो गया और जीने का मक़सद भी सामने आ गया कि 'जियो क्योंकि हमारा मालिक चाहता है कि अभी हम जियें .'
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/03/family-life.html