दो चार बार सरकार बनने के बाद बीजेपी के बारे में प्रचारकों की राय भी बदल जायेगी तब कांग्रेस फिर आ जायेगी और फिर बीजेपी और फिर कांग्रेस.
जनता के हाथ कुछ नहीं आयेगा. शोर मचाने वाले शहरी ब्लॉगर हैं. वे अपने मेहनताने के रूप में उनके लेटर पर अपने बच्चों के एडमिशन बिना डोनेशन के करवा लेंगे.
बस.
कुल कहानी यह है.
मूल पोस्ट देखें:
लगभग डेढ़ वर्ष से इस स्तंभ को कभी-कभार देख रहा हूं। कुछ दिन देखता हूं फिर लंबे समय के लिए दूर हो जाता हूं। कभी-कभार कुछ ब्लॉग अच्छे पढ़ने को मिल जाते हैं।
इस स्तंभ पर एक पार्टी विशेष व जाति विशेष के ब्लॉगर्स व कमेंट्सकारों ने आपातकाल लगाया हुआ है या यूं कहें कि इस स्तंभ को हाईजैक कर रखा है। यदि आप कांग्रेस के पक्ष में या किसी कांग्रेस के नेता के पक्ष में (चाहे वह मनमोहन सिंह जैसा शालीन नेता ही क्यों न हो) कुछ बोल दिया तो आपकी खैर नहीं। आपकी सात पीढ़ियों को याद कर लिया जाता है। इसका असर यह होता है कि इस स्तंभ पर कांग्रेस के पक्ष में या किसी कांग्रेस के नेता के पक्ष में किसी को बोलने या लिखने की हिम्मत नहीं होती है। दादा लोग तैयार बैठे हैं बांहें चढ़ाकर।
इसी तरह से यदि आप भाजपा के या भाजपा के किसी नेता के खिलाफ लिख देते हैं तो तत्त्काल आप देशद्रोही हो जाते हैं। और यदि आपने मोदी जी के खिलाफ जरा भी मुंह खोल दिया तो समझो आपका मुंह तोड़ दिया जाएगा। मजेदार बात यह कि जो भी कांग्रेस को गाली देता है, इन ब्लॉगरों व कमेंटकारों को प्यारा हो जाता है, देश प्रेमी हो जाता है। केजरीवाल जब तक कांग्रेस को धमकाते रहे, सभी मिलकर उनकी जय-जयकार करते रहे, मैंने शुरू में केजरीवाल की मंशा पर जरा सा प्रश्न लगाया तो कमेंटकारों ने मेरी खबर ले ली...महान देशभक्त केजरीवाल के खिलाफ बोलने की हिम्मत कैसे हो गई? हुआ यह कि केजरीवाल ने गडकरी की किरकिरी कर दी...अब? अब ये देशभक्त ब्लॉगर और कमेंटकारों को काटो तो खून नहीं। अब आप केजरीवाल देशद्रोही हो गया, अब उनके खिलाफ लिखा जा सकता है!
रामदेव व अन्ना पक्के रहे, तो आज तक ब्लॉगर व कमेंटकार उनके साथ हैं। इन दोनों के खिलाफ कोई लिख कर देखे? मैंने जरा-सा लिख दिया था तो कमेंट्स की बौछार हो गई। जब कि मैंने तो सिर्फ यह पूछ लिया था कि रामदेव क्यों नहीं ईमानदारी से स्वीकारे कि वे भाजपा को पसंद करते हैं?
हर उस व्यक्ति की आलोचना करना, निंदा करना जो जरा सा भी कांग्रेस का पक्ष रखता हो। संजय दत्त के पीछे पड़े हैं। उसका बाप कांगे्रस में था, उसकी बहन कांग्रेस में है, छोड़ कैसे दें?
काटजू की खाट कर दी है, महान मोदी के खिलाफ बोलता है, काटजू साला?
इन ब्लॉगरों और कमेंटकारों में न तो तटस्थता है, न विचार है, न विमर्श है, न सोच है, बस अंध भक्ति। अब हर दूसरा ब्लॉग भाजपा के समर्थन में, मोदी की जय-जयकार में, कांग्रेस को गाली देने में या कांग्रेस समर्थित किसी भी व्यक्ति की सात पीढ़ियां याद करने में लगा रहता है। मुलायम और अखिलेश से खार खाये बैठे हैं, उनकी प्यारी भाजपा को धूल चटा दी...छोड़ेंगे नहीं इन दोनों को, हर थोड़ी देर में यादव परिवार के गडे मुर्दे उखड़ते हैं। और उत्तराखंड में बहुगुणा, उसकी तो!!!! जब ब्लॉग पढ़ता हूं तो हंसी आती है कि यह सब हो क्या रहा है?
अब यदि यह मान ही लेना है कि सिर्फ और सिर्फ भाजपा ही देशप्रेमी पार्टी, एक धर्म विशेष ही दुनिया का एक मात्र महान धर्म या असली धर्म, मोदी जी जैसा नेता न तो कभी पैदा हुआ न कभी होगा, कांग्रेस से अधिक देशद्रोही पार्टी इस मानवता ने कभी नहीं देखी, जो भी कोई कांग्रेस को ठीक मानता है उसकी सारी पीढ़ियां विक्षिप्तों की थी...तो फिर विचार कैसा, सोच कैसा, कैसे संभव है?
मैंने कुछ ब्लॉग देखे हैं जिसमें बहुत ही तार्किक ढंग से आंकड़ों के साथ साबित किया गया कि शीला दीक्षित ने भी अच्छा काम किया है, निलेश ने बिहार में अच्छे काम किये हैं, मोदी जी के काम में कमियां रही हैं...भाई लोग ऐसे पिल पड़े...?
सच कहता हूं, न तो मेरा कांग्रेस से कुछ लेना-देना है, न भाजपा ने मेरा कुछ बिगाड़ा है, धर्म से मैं दूर ही हूं, मोदी जी को निश्चित पसंद करता हूं, हाल में तो कुछ नेताओं में उनका नाम आता ही है। कुछ व्यक्तिगत कारणों से मोदी जी का मन में बहुत सम्मान है।
लेकिन हां, मनमोहन सिंह जी का बेहद सम्मान करता हूं। वे बेहद सभ्य, ईमानदार व शालीन व्यक्ति हैं, राजनीति में ऐसा व्यक्ति मिलना बेहद-बेहद मुश्किल है, कम से कम अभी तो संभव नहीं।
बाकी देश के हालातों से निराश हूं और जिम्मेदारी न तो कांग्रेस पर डालता, न ही किसी दूसरी पार्टी पर...मेरे अनुसार हमारे देश में प्रजातंत्र ही असफल हो गया। सभी पार्टियों में अपराधी प्रत्याशी होते हैं, राजनीति का अपराधीकरण देश के लिए बुरी से बुरी बात है!
जनसंख्या की प्रलय की तरह आती बाढ़ से आने वाले समय में देश का क्या होगा? सोच कर ही घबरा जाता हूं। कौन जादू का डंडा घूमायेगा? मुंगेरी लाल के हसीन सपनें बाकी सब तो...!!!
जागो! जागो!! जागो!!!
उनके सैकड़ों हज़ारों वर्ष बाद जब उसे लिखा जाता है तो कवि उसमें साहित्य सुलभ कल्पना और अलंकारों का समावेश कर देते हैं। बाद में हर तरह के मनुष्य होते हैं। कुछ के लिए सत्य के बजाय स्वार्थ प्रधान हो जाता है। ये साहित्य में क्षेपक करते हैं। कला, विज्ञान और अध्यात्म के क्षेत्र में नए प्रयोग होने से भी कुछ परिवर्तन होते चले जाते हैं।
जो ईश्वर, धर्म और महापुरूषों को उनके मूल स्वरूप में पहचानते हैं वे उनकी आलोचना नहीं करते। जो आलोचना करते हैं वे ईश्वर, धर्म और महापुरूषों को उनके मूल स्वरूप में नहीं पहचानते।