Sunday, January 2, 2011

ब्लागिंग के ज़रिये सारी मानव जाति को एक परिवार कैसे बनायें ? Live in relation

<b>ब्लागिंग : एक नशा नहीं बल्कि एक पवित्र मिशन</b>
@ जनाब मासूम साहब ! आपने अपनी पोस्ट की शुरूआत में राज भाटिया साहब के एक आदर्श जुमले से की है। हक़ीक़त यह है कि जब तक आदमी नहीं जानता , तब तक ही उससे ग़लती हो सकती है लेकिन जो जानबूझकर और बार बार ग़लती करता है और अपनी ग़लती को सही ठहराता है, वह मात्र दो पैरों पर चलने के कारण आदमी कहलाने का हक़दार नहीं है। सत्पुरूषों ने आदमी को इन्हीं सिफ़्ली ख्वाहिशात से ऊपर उठाने के लिए तरह तरह के तरीक़े बताए हैं लेकिन इन तरीक़ों पर चलता वही है जिसे कि अपनी ग़लतियों से मुक्ति दरकार होती है। जो लोग अपनी ग़लतियों में मज़ा उठाते हैं, उनके लिए नेक नसीहतें किसी काम की नहीं हुआ करतीं, अलबत्ता उन्हें नसीहत से एलर्जी होती है। ‘बंदर बया का घर अक्सर इसीलिए उजाड़ देते हैं‘ कि उसने  उनकी हमदर्दी में उन्हें नसीहत क्यों की ?
दुनिया भर में नेकी का उपदेश देने वालों को फ़क़त इसी जुर्म में मार दिया गया। भारत में भी इस जुर्म में मारे जाने वालों की लंबी तादाद है। संसद में सवाल पूछने के बदले पैसा लेने वाले नेताओं को कोई सज़ा नहीं मिलती लेकिन जब उनकी ‘देश सेवा‘ देखकर देशवासियों का विश्वास उनकी व्यवस्था से उठ जाता है तो कहा जाता है कि
<b>‘इसने सरकार के लिए लोगों के मन में तिरस्कार और विरक्ति के भाव जगाए।‘
</b>जैसा कि डाक्टर विनायक सेन को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाते हुए अदालत ने कहा है। बाबरी मस्जिद के फ़ैसले के बाद यह एक मिसाल है कि हमारी अदालतों के फ़ैसले बेनज़ीर हैं।
डाक्टर विनायक सेन का क़ुसूर यह था कि वह एक ग़रीब नवाज़ डाक्टर है, ग्रामीण इलाक़े के अभावग्रस्त लोगों की सेवा को ही वह अपना कर्म-धर्म मानता था। बौर्ज़ुआ लोग पहले भी मुल्क पर हुकूमत करते आए हैं और यही लोग आज भी हावी हैं। ग़रीब लोग इनके बंधुवा हैं। लीडर इनके गुलाम हैं। नीरा राडिया के मामले में यह साबित हो ही चुका है। समझदार लोग इनके तलुवे चाटने में अपना भविष्य ढूंढते आए हैं हमेशा से। बहुटिप्पणीधन-संपन्न पूँजीजीपति आस्तिक-नास्तिक ब्लाग जगत की आभासी दुनिया की सच्ची आत्माओं को भी गुलाम बना लेना चाहते हैं। जो उनका गुलाम नहीं है, वह आपके साथ ज़रूर आएगा और आपने जिन ग़लतियों की निशानदेही की है, उन्हें भी ज़रूर दूर करेगा। कोयलों की खान में हीरे भी हआ करते हैं।
हीरे मोती आपके पास इकठ्ठे होते ही जा रहे हैं। अजय कुमार झा जी को आपके ब्लाग पर हीरे से उपमा दी भी जा चुकी है। जिनके लिए ऐसा नहीं बोला गया है, वे भी हीरे हैं, कोहेनूर हैं। अब जब आपका बुरा चाहने वालों के अरमान के बावजूद आपका दामन हीरे-मोतियों से लबालब भर गया है तो अजब नहीं कि कुछ जरायम पेशा अफ़राद आपके पीछे लग जाएं या आपका दिल बहलाने की ख़ातिर कोई मदारी अपने बंदरों से आपका दिल बहलाने आ जाए। हक़ीक़त की दुनिया की तरह यहां सर्कस भी है और जोकर भी। लुटिया चोर भी हैं और ब्लाग माफ़िया भी। आप खुद एक ज़मींदार घराने से हैं और माफ़ियाओं के शहर में ही रहते भी हैं, सो आपको हरेक की पहचान भी है और उनसे सलाम-दुआ करना भी आपको आता ही है। जो आपके साथ रहेगा, वह आपसे कुछ पाएगा भी और कुछ सीखेगा भी।
आपके पवित्र मिशन की क़द्र करता हूं और आपके साथ हूं क्योंकि मैं भी ब्लागिंग को एक नशा नहीं बल्कि <a href="http://blogparivaar.blogspot.com/2011/01/blog-post.html?showComment=1293958874229#c1036935508397109129">एक पवित्र मिशन </a>मानता हूं आपकी तरह और आपके साथियों की तरह। इसी बात का ज़िक्र मैंने आज जनाब राज भाटिया जी की पोस्ट पर एक टिप्पणी में भी किया है।
अगर ब्लागिंग का सही इस्तेमाल किया जाए तो सारी राजनैतिक और आर्थिक सरहदों के बावजूद ‘वसुधैव कुटुबंकम्‘ का सपना हक़ीक़त बन सकता है। तब सारी दुनिया एक परिवार बन जाएगी जैसा कि वास्तव में वह है भी।
मनु महाराज की शिक्षा भी यही थी और फ़रमाने मुहम्मदी भी यही है। ईश्वर अल्लाह का आदेश यही है। वेद-कुरआन का सार भी यही है। यही सत्य है। सत्य एक ही है। सत्य को ग्रहण करना ही धर्म है। ‘अमन का पैग़ाम‘ देकर इसी अनिवार्य <a href="http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/karbala-part-2.html">मानव धर्म </a>का पालन कर रहे हैं।
सादर !
शुभकामनाएं! 
नए साल के मौक़े को यादगार बनाने के लिए मैंने दो नए ब्लाग बनाए हैं। आप इन्हें देखकर टिप्पणी करेंगे तो यह सच में यादगार बन जाएंगे।
1- <a href="http://pyarimaan.blogspot.com/">प्यारी मां</a>

2- <a href="http://commentsgarden.blogspot.com/">कमेंट्स गार्डन</a>

http://payameamn.blogspot.com/2011/01/blog-post.html?showComment=1293978975979#c8090666678715872933