राजेश उत्साही |
2- सत्य आधार है और कल्पना मजबूरी। सत्य से मुक्ति है और कल्पना से बंधन। कल्पना सत्य भी हो सकती है और मिथ्या भी लेकिन सत्य कभी मिथ्या नहीं हो सकता। ईश्वर सत्य है और उस तक केवल सत्य के माध्यम से ही पहुंचना संभव है।
सही-ग़लत का ज्ञान कभी षटचक्रों के जागरण और समाधि से नहीं मिला करता। इसे पाने की रीत कुछ और ही है। वह सरल है इसीलिए मनुष्य उसे मूल्यहीन समझता है और आत्मघात के रास्ते पर चलने वालों को श्रेष्ठ समझता है। दुनिया का दस्तूर उल्टा है । मालिक की कृपा हवा पानी और रौशनी के रूप में सब पर बरस रही है और उसके ज्ञान की भी लेकिन आदमी हवा पानी और रौशनी की तरह उसके ज्ञान से लाभ नहीं उठा रहा है मात्र अपने तास्सुब के कारण।
कोई किसी का क्या बिगाड़ रहा है ?
अपना ही बिगाड़ रहा है ।
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