Friday, May 18, 2012

पांव हैं तो चलना ही पड़ेगा

अभिव्यक्ति: मैं चलूंगा - डॉ. शान्तिलाल भारद्वाज ‘राकेश’ की एक कविता
पर हमारी टिप्पणी

यह कविता बहुत अच्छी लगी।
यह कविता पढ़कर दिल में आया कि कह दूं-

तू चलेगा तो मैं भी चलूंगा।
पांव हैं तो चलना ही पड़ेगा।
घाव है तो ढकना ही पड़ेगा।
तू भी चल और मैं भी चलूं।
साथ दोनों चलेंगे तो हल मिलेगा।
चलने का तभी फल मिलेगा।
अकेले सफ़र कोई तय नहीं होता।
एक साथी ज़रूरी है सफ़र में।
मुश्किलें बहुत आती हैं डगर में।
चलना ही है तो एक दिशा में चलें।
कहीं तो पहुंच ही जाएंगे,
कभी न कभी एक रोज़।
यही एक आस है,
जिसके लिए चलना पड़ेगा।
नहीं चलेंगे तो यह आस भी न बचेगी।
आस क़ायम रहे, यह ज़रूरी है।
इसीलिए चलना बहुत ज़रूरी है।