Saturday, February 5, 2011

सहशिक्षा लेकर हराम की औलाद पैदा करते हुए हमारे हिंदू-मुस्लिम युवा आखिर धर्म का मर्म कब समझेंगे ? Invalid relationship

भाई तारकेश्वर जी ! अपनी पोस्ट के जरिए आज आपने एक बहुत बड़ा सच समाज के सामने रख दिया है । वह यह है कि मुसलमान लड़कियों को हिन्दू भाई फुसलाकर गायत्री मंत्र सुना रहे हैं और मुसलमान हैं कि फिर भी उन पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगाते कि हिँदुओं ने कोई मिशन इस नापाक काम के लिए चला रखा है । क्योंकि हकीकत यह है कि ये सब सहशिक्षा आदि के परिणाम हैं । बड़े शहरों में आज हरेक तरह के प्रेम विवाह होना सामान्य चलन है ।
'Love jihad' की पोलपट्टी खोलने के लिए आपको बधाई ।
मालिक आपको बुलंद कर दे , इतना बुलंद कि हरेक बेकार बात आपसे गिरकर नीचे जा पड़े ।
जो हिंदू युवक गायत्री सुन रहा है और मुसलमान लड़की को भगाकर उससे विवाह भी रचाए बैठा है , अगर वह अपने पापकर्म से तौबा नहीं करता है तो ईश्वर की ओर से उस पर सदा श्राप रहेगा , जिनमें से एक मुख्य यह होगा कि उसके घर में ऐसे बच्चे पैदा होंगे जिन्हें हिन्दू शास्त्र 'वर्णसंकर' घोषित करते हैं और आम बोलचाल की भाषा में लोग उन्हें हरामी कहते हैं ।
गायत्री के ज़रिए सन्मार्ग वही पा सकता है जो हराम की औलाद पैदा करने का ख़्वाहिशमंद न हो ।
आप मेरा यह कमेँट 'मुस्लिम महिला के घर गायत्री मंत्र की धुन' पर देख सकते हैं ।

शास्त्रीय पद्धति और लोकाचार को तोड़कर ऐसे वासनाजीवी अपनी क्षुद्र ख़्वाहिश पूरी करने के लिए अक्सर समाज को दंगे की आग में झोंकने से भी नहीं चूकता ।
अभी पिछले दिनों हमारे मुहल्ले के ही एक पठान युवक ने एक हिंदू पंजाबी लड़की को भगाकर उससे शादी रचा ली और पूरा शहर दंगे की कगार पर पहुँच गया था । एक लंबी दास्तान है उसकी भी ।
हालांकि इस्लाम में उनकी औलाद को हरामी नहीं माना जाएगा लेकिन निकाह से पहले जो कुछ उन्होंने किया उसे इस्लाम नाजायज़ ही कहता है । नाजायज़ रास्ते पर चलने वाले लोग समाज के लिए तो क्या अपने बच्चों तक के लिए आदर्श नहीं हुआ करते । ऐसे लोग एक आदर्श समाज की स्थापना में एक बाधा हैं और उनके द्वारा गायत्री मंत्र सुना जाना गायत्री मंत्र का मख़ौल उड़ाना है ।