Monday, April 23, 2012

पुलिस और पीएसी से या सेना से टकराना बेकार है, इस लड़ाई का कोई अंत नहीं है

पर हमारी टिप्पणी
नागरिक और प्रशासन, सभी को अपने अधिकारों के साथ अपने फ़र्ज़ का भी ध्यान रखना चाहिए।
हिंसा से समाज का तो भला नहीं होता लेकिन जो लोग सदियों से अवाम को ग़ुलाम बनाए हुए हैं। उन्हें इसका लाभ ज़रूर मिलता है। लोग हिंदू, मुस्लिम और जाति के आधार पर बंटते हैं तो कमज़ोर वर्गों के लिए न्याय की लड़ाई कमज़ोर पड़ती है।
मुसलमान भी जब तक केवल अपने लिए लड़ते रहेंगे, कामयाब न होंगे।
हरेक शोषित के लिए उन्हें खड़ा होना पड़ेगा और इसके लिए भी हिंसा की ज़रूरत नहीं है बल्कि सबको आपस में एक दूसरे का सम्मान करने और आपस में सहयोग करने के जज़्बे को जगाने की ज़रूरत है।
कमज़ोर कमज़ोर आपस में जुड़कर खड़े होंगे तो ज़ालिम बिना लड़े ख़ुद ही कमज़ोर हो जाएगा।
पुलिस और पीएसी से या सेना से टकराना बेकार है।
इस लड़ाई का कोई अंत नहीं है।
दुनिया में ताक़त ही राज करती है।
कोशिश करनी चाहिए कि ताक़त न्याय करने वालों के हाथों में ही पहुंचे।
इसके लिए जागरूकता के लंबे आंदोलन की ज़रूरत है क्योंकि इस तरह के लोग न इस पार्टी में हैं और न उस पार्टी में।
समस्या को शॉर्ट कट तरीक़े से हल करने की कोशिश में कमज़ोर लोग दमन का शिकार होंगे और वे पहले से भी ज़्यादा बर्बाद होकर रह जाएंगे।
 

Friday, April 20, 2012

एक मूल प्रश्न : पैमाना अगर बुद्धि हो तो किसकी बुद्धि हो ? Wisdome

किरपा का धंधा और आत्मविश्वास

पर हमारी टिप्पणी

एक मूल प्रश्न
गुटखा नुक्सान देता है लेकिन लोग फिर उसे खाते हैं क्योंकि लोग नहीं जानते कि ‘इमोशनल फ़ीडिंग‘ नाम की भी कोई चीज़ होती है। कोई गुटखा खाता है तो कोई पान खाता है। इनकी कृपा से ही पान वाले की रोज़ी रोटी चल रही है। ऐसे ही सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से एक दूसरे को लाभ पहुंचा रहे हैं। यही कृपा लाभ है।
लोग एक दूसरे से लड़कर उन्हें नष्ट करने पर तुले हुए नहीं हैं। यह भी उनकी एक दूसरे पर कृपा है। कृपा लाभ से ही समाज क़ायम है।
समाज की संरचना बड़ी जटिल है और मानवीय संबंधों की संरचना उससे भी ज़्यादा जटिल है। गुरू शिष्य का रिश्ता भी इसी दायरे में आता है। रिश्ते हमेशा से हैं और उनकी मर्यादा भी। मर्यादा से खेलने वाले भी हमेशा से हैं।
सही गुरू सही मार्गदर्शन देगा, सही ज्ञान देगा और जिसे ख़ुद सही ज्ञान न हो वह केवल धोखा देगा। निर्मल बाबा यही कर रहे हैं।
किसी के काम को धोखा कहने के लिए हमारे पास एक ऐसा पैमाना होना ज़रूरी है जो ज्ञान-अज्ञान और विश्वास-अंधविश्वास में फ़र्क़ करना सिखा सके।
इस पैमाने के अभाव में हरेक की बुद्धि अलग फ़ैसला लेगी। एक की बुद्धि एक बात को सही और जायज़ बताएगी तो दूसरे की बुद्धि उसी काम को ग़लत और नाजायज़ बताएगी।
पैमाना अगर बुद्धि हो तो किसकी बुद्धि हो ?

यह मूल प्रश्न हल हो जाए तो इस देश में फ़र्ज़ी बाबाओं की धोखाधड़ी का वुजूद ही ख़त्म हो जाएगा।

एक विचारणीय पोस्ट देने के लिए शुक्रिया !


Monday, April 16, 2012

धर्म के धंधेबाज़ों को चुनौती कौन देगा और कैसे देगा ? Thag

पर एक टिप्पणी
आस्तिक हो या नास्तिक फ़्रॉड हरेक वर्ग के लोग कर रहे हैं। जनता जहां भी जा रही है फ़्रॉड लोग ही हाथ आ रहे हैं।
कुछ लोग ख़ुद को नास्तिक बताते हैं लेकिन अपनी बहन को उसी तरह बहन मानते हैं जिस तरह कि आस्तिक लोग धर्मानुसार मानते हैं। जब वह अपनी बहन के लिए लड़का तलाशने निकलता है तो भी वह उन सब परंपराओं का पालन करता जिनका पालन आस्तिक लोग करते हैं। उनकी शादी में वैदिक मंत्रों का उच्चारण करने के लिए पंडित जी भी आते हैं और उन्हें दक्षिणा आदि देकर ही विदा किया जाता है।
इस देश के नास्तिकों का हाल भी जब आस्तिकों जैसा है तो फिर धर्म के धंधेबाज़ों को चुनौती कौन देगा और कैसे देगा ?
जीवन भर चुनौती देने वाला भी समय आने पर इनके ही चरणों में धन अर्पण करता हुआ मिलेगा।
लिखने और बोलने की छूट यहां है। सो सब लिख रहे हैं।
आपने भी लिखा और अच्छा लिखा।
एक अच्छे निबंध के सभी तत्व इसमें विद्यमान हैं।
बधाई हो ।

लड़की के मायके वाले बेटी के घाव देखकर भी अनदेखा क्यों कर देते हैं ? Beti ka Dard

लड़की के मायके वाले बेटी के घाव देखकर भी अनदेखा कर देते हैं क्योंकि कुछ तो पुरानी परंपराएं आड़े आ जाती हैं कि अगर यहां से बात ख़राब हो गई तो फिर इसका दूसरा विवाह करना पड़ेगा जो कि हमारे ख़ानदान में आज तक नहीं हुआ और दूसरी तरफ़ हिंदुस्तानी क़ानून औरतों का पक्षधर होने के बावजूद औरत को कुछ ख़ास नहीं दिला पाता।
हमने अपनी बहन के दुख पर ध्यान दिया।
आज 4 चार से ज़्यादा अदालत में केस लड़ते हुए हो गए हैं लेकिन एक पैसा अदालत अब तक ख़र्चे का नहीं दिला सकी है।
तलाक़ का मुक़ददमा किया तो डाकिए ने सम्मन पर यह लिखकर वापस कर दिया कि घर पर ताला लगा है। परिवार के लोग कहीं बाहर गए हुए हैं। यह बात डाकिए ने लिफ़ाफ़े पर नहीं लिखी बल्कि उसे फाड़कर अंदर के सम्मन पर लिखी लेकिन अदालत ने इसे सम्मन की तामील नहीं माना और दोबारा फिर सम्मन जारी कर दिया।
यहां उम्र ऐसे ही बर्बाद करती है अदालती कार्रवाई।
अब हमने शरई अदालत में मुक़ददमा किया है। वहां क़ाज़ी दो बार डाक से सम्मन भेजेगा और तीसरी बार दस्ती यानि बाइ हैंड।
या तो शौहर आकर अपना पक्ष रखेगा या फिर नहीं आएगा। तब तीन माह के अंदर क़ाज़ी लड़की को ‘ख़ुला‘ दे देगा। लड़की दूसरी जगह निकाह करने के लिए आज़ाद होगी।
हिंदुओं में भी इस तरह की बिना ख़र्च की अदालतें हों तो लड़की के लिए जीने की राह आसान हो सकती है।
इस विषय को विस्तार से देखिए-
हिंदुस्तानी इंसाफ़ का काला चेहरा
अगर आप किसी मजलूम लड़की के बाप या उसके भाई हैं तो आपके लिए हिंदुस्तान में इंसाफ़ नहीं है, हां, इंसाफ़ का तमाशा ज़रूर है। हिंदुस्तानी अदालतें इंसाफ़ की गुहार लगाने वाले को इंसाफ़ की तरफ़ से इतना मायूस कर देती हैं कि आखि़रकार वह हौसला हार कर ज़ालिमों के सामने झुक जाता है।
यह मेरा निजी अनुभव है।
आप किसी भी अदालत में जाइये और अपनी बहन-बेटी के साथ इंसाफ़ की आस में भटक रहे लाखों लोगों में से किसी से भी पूछ लीजिए, मेरी बात की तस्दीक़ हो जाएगी।

उलमा ए इसलाम मिल्लत के साझा मसाएल हल करने के लिए मसलकी फ़िरक़ावारियत से हटकर सोचें

आपका-अख्तर खान "अकेला": गोपलागढ़ का भूत सरकार का पीछा नहीं छोड़ रहा है
पर एक टिप्पणी
कमज़ोरों के साथ यही सुलूक होता है।
जुर्म अपना है कि बंट कर कमज़ोर क्यों हुए ?
मौलाना फ़ज़्ले हक़ को कोशिश करनी चाहिए कि उलमा ए इसलाम मिल्लत के साझा मसाएल हल करने के लिए मसलकी फ़िरक़ावारियत से हटकर सोचें। पूरे मुल्क में अपना एक अमीर बनाएं और अवाम को बताएं कि उन पर हुक्म ए ख़ुदा की इत्तबा वाजिब है।
उलमा के एक होते ही अवाम एक हो जाएगी और आप के एक होते ही हरेक ताक़त सज्दे में गिर पड़ेगी।
दुनिया में ताक़तवर ही राज करता है।
ताक़त हासिल कीजिए,
शिकायतों की सुनवाई यहां कम होती है।

Wednesday, April 4, 2012

आदम हव्वा का नंगा फोटो लगाने पर हमें ऐतराज़ है

देशनामा: बोल्डनेस छोड़िए हो जाइए कूल...खुशदीप​

आदम हव्वा का नंगा फोटो लगाने पर हमें ऐतराज़ है

खुशदीप जी को उनकी ग़लती बताई तो मानने के बजाय हमारी टिप्पणी ही मिटा डाली .
खुशदीप जी की गलती दिलबाग जी ने भी दोहरा डाली .

अथर्ववेद 11,8 बताता है कि मनु कौन हैं ?
इस सूक्त के रचनाकार ऋषि कोरूपथिः हैं -
यन्मन्युर्जायामावहत संकल्पस्य गृहादधिन।
क आसं जन्याः क वराः क उ ज्येष्ठवरोऽभवत्। 1 ।

यहां स्वयंभू मनु के विवाह को सृष्टि का सबसे पहला विवाह बताया गया है और उनकी पत्नी को जाया और आद्या कहा गया है। ‘आद्या‘ का अर्थ ही पहली होता है और ‘आद्य‘ का अर्थ होता है पहला। ‘आद्य‘ धातु से ही ‘आदिम्‘ शब्द बना जो कि अरबी और हिब्रू भाषा में जाकर ‘आदम‘ हो गया।
स्वयंभू मनु का ही एक नाम आदम है। अब यह बिल्कुल स्पष्ट है। अब इसमें किसी को कोई शक न होना चाहिए कि मनु और जाया को ही आदम और हव्वा कहा जाता है और सारी मानव जाति के माता पिता यही हैं।
अपने मां बाप आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम पर मनघड़न्त चुटकुले बनाना और उनका काल्पनिक व नंगा फ़ोटो लगाना क्या उन सबकी इंसानियत पर ही सवालिया निशान नहीं लगा रहा है जो कि यह सब देख रहे हैं और फिर भी मुस्कुरा रहे हैं ?
See
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/manu-means-adam.html
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Replies

  1. जमाल जी , जब मनु आदम एक ही हैं , तब पाला बदल कर उनको मानने का क्या औचित्य ??? तब इस्लाम का क्या औचित्य ??? हर बार आप ये कहने की कोशिश करते हैं , की दोनों धर्म एक ही हैं , फिर बार बार इस्लाम इस्लाम चिल्लाने की क्या जरुरत ... ?? इस तरह की दलीले तो मई १०० रख दूँ , खैर ये टिप्पड़ी आपके दलील पे थी .

    रही बात अदम हौव्वा को नंगी फोटो लगाने की तो इस बात पे मै आपसे सहमत हूँ ...
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  2. एक तरफ तो कहते हो हम एक ही है , एक तरफ कहते हो हम सर्वश्रेष्ठ है , किसी भी चीज को दलील देके गेंद अपने पाले करने में आप माहिर हैं . ( मेरी ये टिप्पड़ी आपके टिप्पड़ी पे है , फोटो वाले मुद्दे पे मै सहमत हूँ )
    1. @ कमल जी ! स्वयंभू मनु का ही नाम आदम है और सनातन धर्म का नाम ही अरबी में इस्लाम है, जिसका अर्थ है ईश्वर की आज्ञा का पालन करना।
      इस्लाम इस्लाम चिल्लाने का अर्थ यह है कि लोगों तक यह संदेश पहुंचे कि ईश्वर का आज्ञापालन करो।
      इसमें किसी को भी कोई आपत्ति न होनी चाहिए।

      इस्लाम की एक ख़ास बात यह है कि क़ुरआन में सबसे पहले जिस ऋषि का वृत्तांत बताया गया है वह स्वयंभू मनु हैं। क़ुरआन में हमारे पास मनु महाराज का ऐसा आदर्श चरित्र है जिस पर दुनिया का एक भी आदमी ऐतराज़ नहीं कर सकता। इसीलिए हम मनु महाराज की शिक्षाओं पर उठने वाले ऐतराज़ का निराकरण करने में सक्षम हैं।
      हम मनु के धर्म पर हैं, हम मनुवादी हैं और वास्तव में मनुवादी हैं ही हम। मनु ने अपनी संतान को बराबरी की शिक्षा दी थी, यह बात केवल हम कह सकते हैं, आप नहीं।
      पाला हमने नहीं बदला है बल्कि आपने ही धर्म और धार्मिक इतिहास भुला दिया है।

Monday, April 2, 2012

पत्नी की संतुष्टि उसका स्वाभाविक अधिकार है Women's Natural Right

वंदना गुप्ता जी ने हिंदी ब्लॉग जगत को एक पोस्ट दी है ‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘
हमने उनकी इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा है कि

वंदना गुप्ता जी ! आपने नर नारी संबंधों के क्रियात्मक पक्ष की जानकारी बहुत साफ़ शब्दों में दी है। यह सबके काम आएगी। तश्बीह, तम्सील और बिम्बों के ज़रिये कही गई बात को केवल विद्वान ही समझ पाते हैं और फिर उनके अर्थ भी हरेक आदमी अलग अलग ले लेता है। आपका साहित्य सरल है इसे हरेक आदमी समझ सकता है। पुरूषों को यह बात ज़रूर जाननी चाहिए कि शारीरिक संबंधों की अदायगी भी क़ायदे से होनी चाहिए जैसे कि धार्मिक कर्मकांड और इबादत में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कहीं भी कोई कमी न रह जाए।
ईश्वर तक पहुंचने के लिए सीढ़ी माने जाने वालों से पत्नी के लिए पति और पति के लिए पत्नी भी हैं।
ईश्वर की प्रसन्नता चाहना भारतीय संस्कृति का अभिन्न तत्व है और अरबी संस्कृति का भी। संपूर्ण विश्व की आध्यात्मिक संस्कृति का मूल तत्व यही है। पत्नी भी प्रसन्न है कि नहीं, यह भी देखना बहुत ज़रूरी है। मां बाप गुरू अतिथि और पत्नी राज़ी हैं तो समझ लीजिए कि आपसे आपका रब भी राज़ी है।
पत्नी को राज़ी करना भी निहायत ही आसान है।
पत्नी चाहती क्या है ?
सिर्फ़ दो बोल प्रशंसा के,
जैसे कि ...
जब से तुम इस घर में आई हो मेरी ज़िंदगी संवर गई है।
तुम्हारे प्यार की क़द्र मेरे दिल में बहुत गहराई तक है।

बस हो गई नारी तुम्हारी, दिल से सदा के लिए।
लेकिन यह तारीफ़ दिल से निकलनी चाहिए।
औरत समर्पण करती है और अपने आप को मिटाती है तो उसे तारीफ़ मिलनी भी चाहिए।

मर्द को अपने खान पान को भी ‘औरत ओरिएंटिड‘ रखना चाहिए। मर्द को मछली और मुर्ग़ा ज़रूर खाना चाहिए। अगर मर्द शाकाहार का अभ्यस्त हो और सीधे मांस न खा सकता हो तो उसे दूध, शहद, बादाम, पनीर, लहसुन, अदरक, आंवला और एलोवेरा का सेवन ज़रूर करना चाहिए। बदन में जितनी ज़्यादा जान होगी, वह अपने महबूब के साथ उतना ही लंबा सफ़र कर सकता है।
महबूब को चांद के पार ले जाने में एलोवेरा का जवाब नहीं है। एलोवेरा के सेवन के बाद नारी तो संतुष्ट हो ही जाती है लेकिन मर्द संतुष्टि के अहसास को रिपीट करने का बल तुरंत ही पाता है।
चरम सुख के शीर्ष पर औरत का प्राकृतिक अधिकार है, हमारा यह उदघोष सदा से ही है।

इतनी लंबी टिप्पणी सिर्फ़ इसलिए कि जो भी पढ़े उसका वैवाहिक जीवन पूरी तरह संतुष्ट हो। संतोष परम धन है और हम भारत के युवक युवकों को ही नहीं बल्कि वृद्धों और वृद्धाओं को भी परम धनी देखना चाहते हैं। विधवा और विधुर सब इस धन से समृद्ध हों।
यह परम धन पास हो तो फिर लौकिक धन मुद्रा की कमी नर नारी को परेशान नहीं करती। उच्च के सामने तुच्छ का मूल्य गौण हुआ करता है।